वंदना-ओडिशा के तटीय क्षेत्रों के किसानों के लाभ के लिए एक चक्रवात-पूर्व चावल किस्म
ओडिशा के तटवर्ती भागों को विभिन्न तीव्रता के चक्रवात का अक्सर सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से सितंबर से नवंबर के महीनों में जिसके परिणामस्वरूप आर्द्र मौसम चावल और अन्य फसलों को विभिन्न प्रकार से नुकसान होता है। अक्टूबर 1999 के अंत में, महाप्रलयंकारी तूफान ने ओडिशा के तटीय जिलों, विशेष रूप से जगतसिंहपुर जिले के एरसमा प्रखंड को तबाह कर दिया, जिससे खेतों और फसलों के अलावा घरों और मानव जीवन को अधिक नुकसान हुआ। ऐसी अप्रत्याशित, प्रतिकूल स्थिति में, तूफान से पहले आकस्मिक क्षेत्र की फसलों की खेती कृषक परिवारों को खाद्य एवं पोषण सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक उपयुक्त उपाय होगा। इसी को ध्यान में रखते हुए, महाप्रलयंकारी तूफान से प्रभावित क्षेत्रों में, ओडिशा के पुरी जिले के अस्तरंग और जगतसिंहपुर जिले के एरसामा में विनाश हो चुके कृषि क्षेत्रों को पुनरुद्धार करने के उद्देश्य से, “ओडिशा में महाप्रलयंकारी तूफान प्रभावित क्षेत्रों में तटीय कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र का प्रबंधन” नामक एक परियोजना जून 2001 में शुरू किया गया था। तीन साल की अवधि एवं एनएटीपी से 195.62 लाख रुपये की वित्तीय सहायता सहित यह एक बहुआयामी और बहु संस्थागत गतिविधि वाली परियोजना है एवं एनआरआरआई, कटक इस परियोजना का लीड सेंटर है तथा भुवनेश्वर स्थित सभी भाकृअनुप संस्थान/ क्षेत्रीय केंद्र और ओडिशा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय इसके आठ अन्य सहयोगी केंद्र हैं।
ऊपरी और मध्यम भूमि स्थितियों में शीघ्र पककर तैयार होने वाली चावल की किस्म विशेषकर ‘वंदना’(90 दिन की अवधि) की खेती करते समय, कई अन्य कार्यक्रमों के अलावा, तूफान-पूर्व चावल की किस्म की अवधारणा की कल्पना पहली बार की गई। दोनों लक्ष्य क्षेत्रों में 19 किसानों तथा बीज उत्पादन किसानों (10) को इस किस्म के कुल 100 किलोग्राम के गुणवत्ता बीज वितरित किया गया था। इन किसानों में से, इरसामा प्रखंड के चुलिया गाँव के श्री शेख मोहम्मद, लगभग 60 वर्ष एवं सीमांत किसान, के पास 3 एकड़ भूमि है। उन्होंने 252 वर्गमीटर क्षेत्र के मध्यम भूमि में वर्ष 2002 के आर्द्र मौसम में चावल ‘वंदना’ की खेती की। वर्ष 2002 के 8 जून को नर्सरी तैयार की गई और 20 दिन पुराने स्वस्थ अंकुरित पौधों की रोपाई 28 जून, 2002 को की गई। इस चावल की फसल में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 2O किलोग्राम फोस्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया गया था। नाइट्रोजन उर्वरकों को दो भागों में, 50% आधारी और शेष 30 दिनों के बाद प्रयोग किया जाता है। फसल में फूल लगने के चरण में प्रमुख कीट गंधीबग था। उन्होंने कीटनाशक मोनोक्रोटोफॉस 0.5 किलोग्राम एआई/ हेक्टेयर दर पर दो छिड़काव द्वारा गंधीबग कीट को नियंत्रित किया। बीज बोने के 90 दिनों के बाद पहली सितंबर को चावल फसल की कटाई की गई थी। श्री मोहम्मद को 252 वर्गमीटर क्षेत्र में 167 किलोग्राम चावल की उपज मिली जो कि 6.6 टन/हेक्टेयर की अनुमानित उपज के समान था। परियोजना क्षेत्रों के अन्य किसानों ने 3 महीने की अवधि में 4 से 5 टन/ हेक्टेयर की मीमा में उपज प्राप्त की। इन किसानों को ‘वंदना’ उगाने और ९ ० दिनों की छोटी अवधि में चावल की अच्छी मात्रा में कटाई करने से लाभ हुआ। ओडिशा में सितंबर से नवंबर के महीनों में अक्सर होने वाले तूफान के बुरे प्रभावों से बचने के लिए यह रणनीति किसानों के लिए बहुत कारगर साबित होगी।
परियोजना की इस रणनीति ने किसानों में शीघ्र पककर तैयार होने वाली चावल की किस्म ’वंदना’ की खेती के लिए अधिक जागरूकता पैदा की है। सभी अपनाए गए किसान 2003 के आर्द्र मौसम में उपयोग के लिए इस किस्म के बीज संरक्षित रखे हैं। श्री शेख मोहम्मद ने 2003 के शुष्क मौसम में अधिक मात्रा में बीज के उत्पादन करने के लिए इस किस्म की खेती की। अपनाए गए किसानों से बीज एकत्र करके लगभग 100 किसान इस वंदना चावल किस्म की खेती करेंगे। इस परियोजना की अवधि के अंत तक, यह उम्मीद है कि बड़ी संख्या में किसान इस ‘वंदना’ चावल की किस्म को अपनाएगें। वंदना की खेती और शीघ्र पककर तैयार होने वाली इसी तरह की किस्मों की खेती से सितंबर-नवंबर के महीनों में तूफान के आने से पहले पर्याप्त भोजन संरक्षित रखने में सुविधा होगी।