प्रमुख उपलब्धियां

भाकृअनुप-एनआरआरआई, कटक की हाल की उपलब्धियां

  1. लोकप्रिय उच्च उपज देने वाली किस्म ‘नवीन’ में उच्च प्रोटीन मात्रा के अंतःक्षेपण के माध्यम से सीआर धान 310 नामक एक उच्च प्रोटीन चावल किस्म विकसित किया गया है जिसे केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा देश में पहली उच्च प्रोटीन चावल किस्म के रूप में विमोचित किया गया है, जिसकी औसत अनाज उपज 4.5 टन/हेक्टेयर है और इसमें 10.2% प्रोटीन की मात्रा है। यह किस्म सिंचित पारिस्थितिकी तंत्र में आर्द्र और शुष्क दोनों मौसमों के लिए उपयुक्त है। स्वर्णा (एमटीयू 7029) की पृष्ठभूमि में उच्च प्रोटीन वंश विकसित की गई हैं और उनका मूल्यांकन किया जा रहा है।

 

  1. इस संस्थान में विकसित सीआर धान -701 (सीआरएचआर-32) देश में विमोचित होने वाली पहली लंबी अवधि वाला हाइब्रिड चावल किस्म है जिसमें स्वर्णा, सावित्री और पूजा जैसी लोकप्रिय किस्मों का स्थान लेने की क्षमता है एवं इसकी परिपक्वता अवधि 142 दिनों की है। हाइब्रिड किस्म ने ओडिशा, बिहार, गुजरात और तमिलनाडु में आर्द्र मौसम में 6.5 टन / हेक्टेयर और शुष्क मौसम में 7.5 टन / हेक्टेयर उपज के साथ अच्छा प्रदर्शन किया है। यह किस्म उथली निचलीभूमि स्थिति के लिए उपयुक्त है और दौजी निकलने की अवस्था में 10-15 दिनों तक स्थिर पानी (30 सेमी) में सहिष्णु है तथा राइस टुंग्रो रोग, आच्छद अंगमारी और हरा पौध माहू के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है। इसके दाने मध्यम पतले एवं पारभासी है, कुटाई के बाद अच्छे एचआरआर प्राप्त होता है, मध्यम एमाइलोज मात्रा (25.61%) है और पकाने या खाने के गुण अच्छे हैं।
  1. उपयुक्त किस्मों की खेती और अनुपूरक सिंचाई के साथ गैर-कीचड़दार मिट्टी में सीधी बुआई फसल के रूप में चावल की खेती एरोबिक स्थिति से बहुत कम ग्रीन-हाउस गैस उत्सर्जन करती है और सिंचित चावल के क्षेत्र में एक तिहाई से अधिक पानी की खपत को कम किया जा सकता है। इस संस्थान में एरोबिक चावल की किस्में जैसे सीआर धान 200 (प्यारी), सीआर धान 201, सीआर धान 202, सीआर धान 203 (सचला), सीआर धान 205 और सीआर धान 206 (गोपीनाथ) विकसित की गईं जिनकी परिपक्वता अवधि 10-115 दिनों की है।
  1. एंड्रोजेनेसिस के माध्यम इंडिका चावल के मामले में एल्बिनो शूट पुनर्जनन सबसे कष्टप्रद समस्या थी। समस्या से निपटने के लिए एल्बिनो से मुक्त ग्रीन शूट पुनर्जनन की अधिक बारंबारता के लिए एक प्रोटोकॉल मानकीकृत किया गया है जिसका पेटेंट भी दायर किया गया है। (आवेदन संख्या 1355 / KOL2015)।

  1. निराई प्रक्रिया के समय यूरिया ब्रिकेट प्रयोग करने के लिए कोनोवीडर पर लगा एक यूरिया ब्रिकेट एप्लिकेटर विकसित किया गया है। इसमें दो शंकु, एक फ्लोट, एक ब्रिकेट हॉपर, ब्रिकेट वितरण प्रणाली और फ्रेम में लगा एक हैंडल है। एप्लीकेटर का काम कॉनोवीडर के समान होता है जिसमें संचालक को वीडर को धक्का देना पड़ता है और उसी समय कुछ अंतराल पर हैंडल पर लगे क्लच को धकेलना पड़ता है जिससे एक बार में एक या दो यूरिया ब्रिकेट का उपयोग होता है।

 

  1. भाकृअनुप-एनआरआरआई, कटक द्वारा धान की फसल में पंक्तियों के बीच निराई करने के लिए शक्तिचालित एक कतार वाला ड्राई वीडर विकसित किया गया है। वीडर में इंजन, ब्लेड असेंबली (एल आकार ब्लेड) और ट्रांसमिशन सिस्टम शामिल हैं। घूमने वाले ब्लेड से खरपतवार कट जाते हैं और मशीन को आगे की गति भी मिलती है साथ ही वीडर की आगे चलने की गति क्षमता 1.28 किमी / घंटा है, खरपतवार निराई करने की क्षेत्र क्षमता 0.025 हेक्टेयर / घंटा है एवं 62.5% की खरपतवार निराई दक्षता है। वीडर के संचालन करने की लागत कम होने के साथ निराई कार्य में शामिल मजदूरी बच जाती है।

 

  1. नाइट्रोजन प्रयोग के विभिन्न स्तरों के तहत भारत के पूर्वी क्षेत्रों में खेती की जाने वाली स्थानीय किस्मों एवं सैकड़ों उच्च उपज देने वाली किस्मों के पत्तों के वर्णक्रमीय मूल्यांकन के आधार पर विभिन्न पारिस्थितिकी के लिए चावल में नाइट्रोजन प्रबंधन हेतु एक पांच पैनल वाला अनुकूलित पत्ता रंग चार्ट (सीएलसीसी) भाकृअनुप-एनआरआरआई द्वारा विकसित किया गया है। यह एक सस्ता और उपयोग हेतु आसान उपकरण है जिसमें नाइट्रोजन प्रयोग सूची वाले फ़ोल्डर के साथ प्रदान किया गया है। इसका चार्ट को उपयोग करके, किसान नाइट्रोजन प्रयोग को वास्तविक फसल की मांग को समायोजित कर सकते हैं एवं उच्च पैदावार प्राप्त कर सकते हैं तथा नाइट्रोजन उपयोग दक्षता बढ़ा सकते हैं। सीएलसीसी के निर्देश अंग्रेजी, हिंदी और ओडिया में सरल भाषा में उपलब्ध हैं जिनका किसानों द्वारा आसानी से पालन किया जा सकता है। सीएलसीसी का व्यवसायीकरण किया गया है और इसे चेन्नेई की कंपनी द्वारा रु. 110 प्रति सीएलसीसी की दर से निर्मित किया जा रहा है।
  1. “क्लाइमेट स्मार्ट रिसोर्स कंजर्वेशन टेक्नोलॉजी (सीआरसीटी)” के रूप में सबसे अच्छे प्रस्ताव की पहचान की गई है जिसमें (i) कृषक द्वारा मोल्ड बोर्ड से हल चलाते हुए (तीन साल में एक बार) प्राथमिक भूमि की तैयारी एवं इसके बाद मिट्टी के चूर्णीकरण, (ii) बीज ड्रिल के साथ युग्मित पंक्ति (15 से.मी. की दूरी पर) में ढैंचा एवं चावल की शुष्क सीधी बुआई, (iii) बुआई करने के 25 दिनों बाद कोनेावीडर द्वारा ढैंचा का समावेश, (iv) सिफारिश की गई नाइट्रोजन का 75% प्रयोग, आधारी के रूप में फोस्फोरस और पोटाश के संपूर्ण मात्रा का प्रयोग, (v) अनुकूलित पत्ता रंग चार्ट आधारित दो भागों में नाइट्रोजन का प्रयोग और (vi) रीपर द्वारा यांत्रिक कटाई शामिल हैं।
  1. लीफ फोल्डर (नाफालोक्रोसिस मेडिनालिस) के देशी रोगजनकों जैसे ब्यूबेरिया बैसियाना, मेथेरिजियम एनिसोप्लाए और 4 बैसिलस थुरिंजेंसिस वियुक्तों (TB160, 161, 261 और 263) को गीलायुक्त योग्य चूर्ण सूत्रण के रूप में तैयार किया गया और पेटेंट के लिए आवेदन किया गया (आवेदन संख्या 264/ KOL/2015, 263/KOL/2015, 261/KOL/2015 और 262/KOL/2015)। ये सूत्रण क्षेत्र में लगभग 69% लीफ फोल्डर के डिंभको को नियंत्रित कर सकते हैं जो कीट नियंत्रण के लिए रासायनिक पदार्थों के प्रयोग को कम करेगा।
  1. तना छेदक, भूरा पौध माहू और गाल मिज, चावल प्रध्वंस की महामारी विज्ञान, भूरे धब्बे और चावल के टुंग्रो रोगों जैसे प्रमुख कीटों की जीव विज्ञान और पारिस्थितिकी को समझने के लिए अग्रणी अनुसंधान कार्य किए गए हैं।
  1. चावल के कीटों के प्रबंधन के लिए कई आईटीके-आधारित वनस्पति की पहचान की गई है और उन्हें परिष्कृत किया गया है।
  1. चावल उपज की क्षमता को बढ़ाने के अलावा बीज जनित रोगजनकों के प्रबंधन के लिए एक नई ट्राइकोडर्मा उपभेद विकसित किया गया है और पेटेंट के लिए आवेदन किया गया है।
  1. चावल के कीटों के प्रकाश जाल के लिए एक वैकल्पिक ऊर्जा की प्रभावकारिता का आगे मूल्यांकन किया गया और दिनांक 18 मार्च 2014 को अंतिम पेटेंट आवेदन किया गया जिसकी संख्या है 341/केओएल / 2014। यह जाल सभी प्रकार के लीफ फोल्डर, तना छेदक कीटों, पौध माहू के वयस्क कीटों को पकड़ता है, जिससे खेतों में इनकी संख्या और परवर्ती संख्या कम होती है।

 

  1. एक गैर-विनाशकारी क्लोरोफिल प्रतिदीप्ति आधारित स्क्रीनिंग तकनीक विकसित की गई है जो पारंपरिक विनाशकारी तकनीक की तुलना में 6 दिनों के भीतर जलमग्न सहिष्णु चावल की किस्मों की पहचान करती है जबकि पारंपरिक तकनीक में कम से कम 12 दिनों की आवश्यकता होती है।
  1. चावल की भूसी आधारित केक और बिस्कुट तैयार करने की तकनीक विकसित की गई है।
  1. राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक ने एक एंड्रोआइड-आधारित मोबाइल ऐप ‘राइसएक्सपर्ट’ विकसित किया है जो किसानों को चावल की खेती के बारे में विशेषज्ञों के पैनल से परामर्श करने एवं जानकारी लेने में सहायता करता है। ऐप किसानों को कीटों, पोषक तत्वों, खरपतवारों, नेमाटोड और रोग-संबंधी समस्याओं, विभिन्न पारिस्थितिकी के लिए चावल की किस्मों, विभिन्न क्षेत्रों के लिए खेत के औजार और कटाई के बाद के कार्यों के बारे में वास्तविक समय में जानकारी प्रदान करता है।
  1. उच्च मूल्य वाले सुगंधित किस्म का चावल ‘गीतांजलि’ के उत्पादन के लिए बीज प्रजनक से बीज मिलर तक एक पांच-पक्षीय समझौता ज्ञापन के माध्यम से एक चावल मूल्य-श्रृंखला स्थापित की गई है। पांच पार्टियां हैं भाकृअनुप-एनआरआरआई, कटक; संसार एग्रोपोल (बीज कंपनी), भुवनेश्वर; अनन्या महिला विकास समिति, सांकिलो, निश्चिन्तकोइली, कटक; महांगा कृषक मंच, कटक और सावित्री इंडस्ट्रीज, मयूरभंज (राइस मिलर)। पहले पक्ष द्वारा विकसित चावल (गीतांजलि) की चयनित किस्म की खेती करने और गैर-अनन्य आधार पर इसके व्यवसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए पार्टियों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं।
  1. स्थानीय स्तर पर सभी किसानों को उनकी जरूरत के अनुसार, सही मात्रा में, सही गुणवत्ता के साथ, कम लागत वाली उत्पादन एवं आपूर्ति के साथ और समय पर बीज उपलब्ध कराने हेतु चावल के लिए एक आत्मनिर्भर स्थायी, बीज प्रणाली (4S4R) जो स्थानीय बीज उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन प्रणाली पर केंद्रित है का विकास किया गया है। एनआरआरआई, कटक के हस्तक्षेप के माध्यम से, ‘महांगा एग्रो प्रोड्यूसर्स 4S4R प्राइवेट लिमिटेड’ नामक एक किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) का कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत गठित और पंजीकृत किया गया है। इस एफपीओ में दो इकाइयां शामिल हैं – एक बीज उत्पादक समूह जिसमें लगभग 1000 किसान हैं, जो मुख्य रूप से छोटे और सीमांत किसान हैं; अन्य इकाई (प्रसंस्करण और विपणन इकाई) में 20-25 मध्यम और बड़े किसान शामिल हैं, जो पूंजी निवेश करेंगे। पूर्व समूह को एफपीओ द्वारा प्रशिक्षण और महत्वपूर्ण इनपुट आपूर्ति के माध्यम से बीज उत्पादन में सहायता दी जाएगी, जबकि दूसरी इकाई उनके द्वारा उत्पादित बीज, प्रक्रिया, पैकिंग और बाजार की खरीद करेगी।