स्थाई खेती को बढ़ावा देना: भारत में संरक्षण कृषि की प्रमुख रणनीतियां और लाभ

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स्थाई खेती को बढ़ावा देना: भारत में संरक्षण कृषि की प्रमुख रणनीतियां और लाभ

राष्ट्रीय कृषि विज्ञान अकादमी (एनएएएस), कटक-भुवनेश्वर चैप्टर और भारतीय मृदा विज्ञान सोसायटी, कटक चैप्टर के सहयोग से संरक्षण कृषि पर परियोजना संघ अनुसंधान मंच के तहत 10 जुलाई 2024 को भाकृअनुप-राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक द्वारा संयुक्त रूप से भारत में संरक्षण कृषि की संभावनाओं पर एक कार्यशाला आयोजित की गई। भाकृअनुप-एनआरआरआई के निदेशक डॉ. ए.के. नायक ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की और नवीन तकनीकों तथा संरक्षण कृषि सिद्धांतों को अपनाने पर चर्चा की, जिससे संसाधन दक्षता और जलवायु परिवर्तन के प्रति कृषि की अनुकूलनीयता में महत्वपूर्ण सुधार हो सकता है। डॉ. ए.के. बिस्वास, एफआईएसएसएस एवं एफएनएएएस, प्रधान वैज्ञानिक एवं पूर्व अध्यक्ष, मृदा रसायन एवं उर्वरता प्रभाग, कंसोर्टियम लीडर, संरक्षण कृषि प्लेटफॉर्म, भाकृअनुप-भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान ने ‘भारत में संरक्षण कृषि की संभावनाएं’विषय पर एक उल्लेखनीय व्याख्यान दिया। उन्होंने भारतीय संदर्भ में संरक्षण कृषि के महत्वपूर्ण महत्व और संभावित लाभों पर जोर दिया। डॉ. बिस्वास ने दीर्घकालिक मृदा स्वास्थ्य, जल संरक्षण और बढ़ी हुई फसल उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए स्थाई कृषि पद्धतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। फसल उत्पादन प्रभाग के अध्यक्ष डॉ. प्रताप भट्टाचार्य ने जलवायु परिवर्तन के संबंध में संरक्षण कृषि पर एक और व्याख्यान दिया। आरंभ में, डॉ. सुष्मिता मुंडा, वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रधान अन्वेषक (सीआरपी ऑन सीए) ने सभी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया और डॉ. एम. शाहिद, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

Author: crriadmin