एनआरआरआई के नेतृत्व में आईवीएलपी-टीएआर के माध्यम से उत्पादन प्रौद्योगिकी में संशोधन द्वारा वर्षाश्रित किसान के जीवन में समृद्धि
पूर्वी भारत में, अधिकांश वर्षाश्रित चावल किसानों के पास छोटी और सीमांत भूमियां है तथा इनके संसाधन भी अल्प हैं। चावल एक प्रधान खाद्य फसल है, जिसकी खेती विभिन्न भूमि स्थितियों में की जाती है। ये पारितंत्र अधिकतर वर्षा पर निर्भरशील हैं और इसलिए यहां नमी की कमी (ऊपरीभूमि) है और अतिरिक्त वर्षा (निचलीभूमि से बाढ़प्रवण की स्थिति) दोनों प्रकार की स्थितियां होती हैं। इन भूमियों में चावल की उत्पादकता आम तौर पर कम मिलता है और विशेष रूप से, वर्षाश्रित स्थिति के तहत, बहुत ही कम उपज होती है।
लगभग 70% उपलब्ध कृषि उत्पादन प्रौद्योगिकियों को किसानों द्वारा विभिन्न बाधाओं के कारण नहीं अपनाया जाता है, जो कि प्रक्षेत्र स्तर पर जैवभौगलिक से लेकर सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में संचालित होती हैं। प्रौद्योगिकियों को न अपनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारण हैं – वे आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं हैं, परिचालन योग्य नहीं हैं, स्थिर नहीं है, किसान की जरूरतों के अनुरूप नहीं हैं और मौजूदा कृषि प्रणालियों के अनुकूल नहीं हैं।
इस सम्मिश्रण को ध्यान में रखते हुए, 1999-2002 के दौरान संस्थान विलेज लिंकेज कार्यक्रम के माध्यम से ओडिशा के कटक जिले के वर्षाश्रित क्षेत्रों के किसानों के खेतों में किसानों के सहभागी लक्षणों का मूल्यांकन किया गया और वर्षाश्रित चावल किस्मों के संबंधित उत्पादन तकनीकों तथा इन किस्मों की फसल स्थापना, खरपतवार प्रबंधन और पोषक तत्व प्रबंधन के तरीकों में संशोधन किया गया।
बेरीना गाँव के श्री युधिष्टिर बेहेरा के पास वर्षाश्रित और निचलीभूमि खेत समेत दो एकड़ की भूमि है। कुल 8 परिवार के सदस्यों (3 कामकाजी और 5 गैर-काम करने वाले) के साथ, वह इन दो एकड़ की भूमि में चावल की खेती करता है। एक वर्ष में, उन्हें मुश्किल से 5-8 क्विंटल चावल मिलता था, जो उनके पूरे परिवार के सदस्यों को खिलाने के लिए पर्याप्त नहीं था। पूरे परिवार का प्रबंधन करने और बेहतर आजीविका के लिए, उन्होंने और उनके बेटों ने अन्य क्षेत्रों में मजदूर के रूप में काम किया। फिर, आईवीएलपी की कोर टीम ने इन सदस्यों को संशोधित तकनीक को अपनाते हुए उन्हें अपनी 2 एकड़ की भूमि में चावल की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया। पहले वर्ष में टीम ने उन्हें विभिन्न पारंपरिक हस्तक्षेपों के लिए आवश्यक तकनीकी सलाह और महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।
अपने एक एकड़ की खेत में, उन्होंने वंदना किस्म की खेती की, जो 90 दिनों में परिपक्व होती है, जिसमें सूखा सहिष्णुता है और वृद्धि के आरंभिक दिनों में खरपतवार को दबाने की क्षमता होती है। जून के दूसरे सप्ताह में 75 किग्रा/ हेक्टेयर की दर से कतारों में (20 सेमी दरी पर) देशी हल से बीज बोए गए थे। बुवाई के समय उन्होंने 2 टन/ हेक्टेयर दर पर फार्म यार्ड खाद और 20 किलोग्राम फास्फोरस एवं 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर दर पर प्रयोग किया। बुवाई के 3 सप्ताह बाद, नाइट्रोजन 30 किलोग्राम/हेक्टेयर दर पर में दो भागों में और बुवाई के 6 सप्ताह बाद नाइट्रोजन का शेष आधा भाग प्रयोग किया गया। बुवाई के 20 दिनों के बाद कतारों के बीच फिंगर वीडर चलाकर तथा अंकुरण के 30 दिनों बाद हाथों से निराई करके खरपतवारों को नियंत्रि किया गया।
निचलीभूमि क्षेत्र में, उन्होंने अपनी ज़मीन के किनारे बहने वाले झरने के पानी का उपयोग करके खरीफ में अर्ध-बौना प्रकाश संश्लेषक किस्म गायत्री और रबी में संकर पीएचबी 71 की खेती की। वर्षाश्रित निचलीभूमि क्षेत्रों में कतार रोपाई द्वारा और नाइट्रोजन 40 किलोग्राम, फास्फोरस 20 किलोग्राम एवं पोटाश 20 किलोग्राम/ हेक्टेयर के प्रयोग से तथा डालुआ/ ग्रीष्मकालीन चावल के लिए नाइट्रोजन 80 किलोग्राम, फास्फोरस 40 किलोग्राम एवं पोटाश 40 किलोग्राम/हेक्टेयर के उपयोग से बेहतर फसल की स्थापना की गई।
एक वर्ष की अवधि के भीतर, श्री बेहेरा ने अपनी दो एकड़ भूमि से 40 क्विंटल चावल (12 क्विंटल ऊपरीभूमि से, 18 क्विंटल खरीफ के दौरान और 20 क्विंटल डालुआ/ ग्रीष्मकालीन) उपज ली। चावल के अलावा, चावल की फसल के बाद, ऊपरीक्षेत्र में टमाटर, पोई, ककड़ी आदि सब्जियां भी पैदा किए, जो उनके परिवार के लिए पर्याप्त थी और इससे उन्हें कुछ अतिरिक्त आय प्राप्त करने में मदद मिली। पिछले दो वर्षों के दौरान इस चावल आधारित फसल प्रणाली को अपनाकर, श्री बेहेरा पूरे परिवार के सदस्यों के लिए साल भर रोजगार के अवसर पैदा करने के अलावा उत्पादन के समान स्तर को बनाए रख सके हैं। आजीविका के बेहतर अवसरों के साथ, न तो वह और न ही उसके परिवार के सदस्य मजदूर के रूप में काम करने के लिए दूसरों के खेतों में जा रहे हैं। बेरेना गांव में, वह उन कई किसानों में से एक है, जिन्हें आईवीएलपी-टीएआर परियोजना से लाभ मिला है, जो एनएटीपी के तहत कटक जिले के वर्षाश्रित क्षेत्रों में चल रहा है।