एनआरआरआई की वैज्ञानिकों की एक दल द्वारा ओडिशा के भूरा पौध माहू और पत्ता मोड़क प्रभावित क्षेत्रों का दौरा

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एनआरआरआई की वैज्ञानिकों की एक दल द्वारा ओडिशा के भूरा पौध माहू और पत्ता मोड़क प्रभावित क्षेत्रों का दौरा

ओडिशा के बालासोर और केंद्रपाड़ा जिलों के धान के खेतों में भूरा पौध माहू और पत्ता मोड़क संक्रमण/घटना की खबर मिलने के बाद प्रभावित प्रखंडों का दौरा करने के लिए भाकृअनुप-राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान, कटक के निदेशक डॉ. अमरेश कुमार नायक ने दो वैज्ञानिक दलों का गठन किया। बालासोर जिले के लिए दल में डॉ. एस डी महापात्र, डॉ. एम चक्रवर्ती, डॉ. जी पी पांडी, डॉ. जीवन बी शामिल थे और केंद्रापाड़ा जिले के दल में डॉ.पी सी रथ, डॉ. ए के मुखर्जी, डॉ. आर एल वर्मा थे। दलों ने बालासोर जिले के रेमुणा, बस्ता और जलेश्वर प्रखंड और केंद्रापाड़ा जिले के महाकालपाड़ा, डेराबिस और गरदपुर का दौरा किया। बालासोर की दल ने गोपालपुर (रेमुणा), बरुनगड़िया (बस्ता), बैगान बादिया (जलेश्वर) और आसपास के गांवों का दौरा किया जबकि केंद्रपाड़ा की दल ने हलबांका (डेराबिस), मंगलपुर (महाकालपाड़ा) और परकाना (गरदपुर) का दौरा किया। दल ने गोपालपुर गांव में चावल की स्वर्णा और कालाचंपा किस्मों के मूल हिस्से में प्रति पूंजा 250-300 भूरा पौध माहू के वयस्क कीटों एवं डींभक और हॉपर बर्न लक्षण देखा। क्षेत्र के किसानों ने उचित नियंत्रण उपाय नहीं किए थे जिसके कारण रेमुणा प्रखंड में हॉपर बर्न हुआ। लेकिन, जलेश्वर प्रखंड में किसानों ने दो से तीन कीटनाशकों के टैंक मिश्रण का उपयोग किया जिससे कीटों का पुनरुत्थान हुआ होगा जिससे गंभीर पत्ती मोड़क घटना हुई है। जलेश्वर प्रखंड के बैगन बदिया गांव में भी पत्ती मोड़क का गंभीर प्रकोप था। लेकिन, बालासोर जिले के सभी स्थानों में, जीवाणुज अंगमारी रोग की घटना कम थी। किसानों को अपने खेतों की नियमित निगरानी करने और पूंजाओं को हिलाकर भूरा पौध माहू के डिंभक/वयस्कों का निरीक्षण करने का सुझाव दिया गया है। एक बार जब कीटों की संख्या ईटीएल स्तर (प्रति पूंजा 5-10 डिंभक/वयस्क) से अधिक हो जाए, तो ट्राइफ्लुमेज़ोपाइरीम, पाइमेट्रोज़िन, डाइनेटोफ्यूरान, फ्लुनिकैमाइड जैसे कीटनाशकों की अनुशंसित मात्रा प्रयोग करने हेतु कहा गया।
किसानों को कीटों और बीमारियों की सही पहचान के लिए एनआरआरआई द्वारा विकसित राइसएक्सपर्ट ऐप का उपयोग करने और सिफारिशों का पालन करने का भी सुझाव दिया गया। दल ने सुझाव दिया कि भूरा पौध माहू के प्रभावी नियंत्रण के लिए छिड़काव को पौधे के मूल हिस्से में किया जाना चाहिए। एनआरआरआई द्वारा विकसित भूरा पौध माहू प्रतिरोधी सीआर धान 317 और सीआर धान 805 नामक दो किस्मों को गांवों के किसानों को वितरित किया गया और भूरा पौध माहू स्थानिक क्षेत्रों में खेती के लिए सुझाव दिया गया। दल के साथ बालासोर के कृषि विज्ञान केंद्र श्री कमलाकांत बेहरा, एसएमएस (कृषि विस्तार) और सहायक निदेशक कृषि, सहायक जिला अधिकारी (कृषि), जिला कृषि विभाग के ब्लॉक कृषि अधिकारी भी थे।

Author: crriadmin