कृषि में सामंजस्य: एनआरआरआई के प्रक्षेत्र की जैव विविधता की खोज
एनआरआरआई की कृषि प्रक्षेत्र भूमि की जैव विविधता और पारिस्थितिकी जीवन शक्ति से भरपूर एक संपन्न पारितंत्र का प्रतिनिधित्व करती है। गैर-चावल फसल प्रणालियों, प्राकृतिक तालाबों और एकीकृत कृषि प्रथाओं के साथ-साथ सिंचित चावल-चावल, एकीकृत और एरोबिक चावल सहित चावल के खेतों में शामिल आर्द्रभूमि प्रणालियां, परिसर के अंदर कृषि और प्रकृति के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का प्रतीक है। पेड़ों, झाड़ियों और जड़ी-बूटियों से भरी प्राकृतिक अबाधित आर्द्रभूमि, पारिस्थितिक अखंडता को संरक्षित करने और स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है। यह जैव विविधतापूर्ण स्थान पक्षियों और कीड़ों से लेकर मछली, सरीसृप और कृंतकों तक असंख्य जैविक संस्थाओं के लिए एक अभयारण्य के रूप में कार्य करता है। परस्पर जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र के अपने जटिल जाल के माध्यम से, भाकृअनुप-एनआरआरआई की कृषि भूमि न केवल कृषि उत्पादकता को बनाए रखती है, बल्कि मानव गतिविधियों और प्राकृतिक संसार के बीच नाजुक संतुलन का भी पोषण करती है, जो भूमि प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण का प्रतीक है।
कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के माननीय सचिव और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ.हिमांशु पाठक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के शिक्षा संभाग के उप महानिदेशक डॉ.आर.सी. अग्रवाल, परिषद के एफएफसी संभाग के सहायक महानिदेशक डॉ.एस.के. प्रधान, भाकृअनुप-एनआरआरआई, कटक के निदेशक डॉ. नायक, निदेशक, ओयूएटी, भुवनेश्वर के कुलपति, प्रोफेसर पी.के. राउल ने 23 अप्रैल, 2024 को एनआरआरआई के 79वें स्थापना दिवस एवं धान दिवस के दौरान वर्चुअल मोड पर एनआरआरआई की इस दर्शनीय स्थान का उद्घाटन किया।