आरआरएलआरआरएस

भाकृअनुप-एनआरआरआई –क्षेत्रीय वर्षाश्रित तराऊंभूमि चावल अनुसंधान केंद्र (आरआरएलआरआरएस) गेरुआ, असम

असम राज्य में कुल खाद्यान्न उत्पादन में 95% चावल का योगदान है और इसकी खेती तीन मुख्य मौसमों में की जाती है। आहू (फरवरी-मार्च से जून-जुलाई), साली (जून-जुलाई से नवंबर-दिसंबर) और बोरो (नवंबर-दिसंबर से अप्रैल-मई)। इन तीन सत्रों में, साली की खेती अधिक क्षेत्र में की जाती है, जो बाढ़ प्रवण है। 23 से अधिक जिले बाढ़ से ग्रस्त हैं, जो चावल की उत्पादकता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और राज्य के कुल उत्पादन को कम करता है। उच्च उपज देने वाली उपयुक्त किस्मों और उत्पादन तकनीक को विकसित करने के लिए, विशेष रूप से असम के बाढ़ प्रवण निचलीभूमि क्षेत्रों के लिए, राज्य सरकार ने राज्य में चावल अनुसंधान के प्रयासों की सहायता करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली से राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के उप-केंद्र की स्थापना पर विचार करने का अनुरोध किया था, क्योंकि एनआरआरआई देश के चावल अनुसंधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस मुद्दे को विचार में लेते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भाकृअनुप-एनआरआरआई के अधीन असम के कामरूप जिले के हाजो सर्कल के गेरुआ में स्थित कृषि विभाग के 12.5 हेक्टेयर की फील्ड ट्रायल स्टेशन भूमि में 15 सितंबर, 1997 को क्षेत्रीय वर्षारित निचलीभूमि चावल अनुसंधान केंद्र (आरआरएलआरआरएस) के रूप में एक उप-केंद्र स्थापित किया गया।

Mandate:

  • वर्षाश्रित निचलीभूमि पारिस्थितिकी तंत्र में चावल की उत्पादकता बढ़ाने और स्थिर करने के लिए फसल सुधार, उत्पादन और सुरक्षा पर बुनियादी, रणनीतिक, प्रायोगिक और अनुकूली अनुसंधान करना।
  • बाढ़-प्रवण निचलीभूमि वाले क्षेत्रों जो आमतौर पर बाढ़ से प्रभावित हैं, के चावल किसानों की आवश्यकताओं को अनुसंधान द्वारा पूरा करना।
  • चावल जननद्रव्यों की खोज, उनका मूल्यांकन और संरक्षण करना।
  • वर्षाश्रित निचलीभूमि पारिस्थितिकी तंत्र के तहत विभिन्न जैविक और अजैविक दबावों के प्रति प्रतिरोधिता/ सहिष्णुता सहित अधिक उपज देने वाली चावल किस्में विकसित करना।
  • वर्षाश्रित निचलीभूमि पारिस्थितिकी तंत्र के तहत चावल आधारित उत्पादन प्रणालियों की उत्पादकता बढ़ाने और बनाए रखने के लिए उपयुक्त कृषि और सुरक्षा प्रौद्योगिकियां उत्पन्न करना।
  • उन्नतशील चावल उत्पादन, चावल आधारित फसल और कृषि प्रणालियों पर किसानों, अधिकारियों, विस्तार विशेषज्ञों और अनुसंधानकर्ताओं को प्रशिक्षित करना।

अनुसंधान के प्राथमिक क्षेत्र:

  • बाढ़ के प्रति सहिष्णुता सहित उपयुक्त साली किस्में विकसित करने के लिए प्रजनन रणनीति को मजबूत करना।
  • बोरो मौसम के लिए प्रध्वंस प्रतिरोधिता और ठंड सहिष्णुता के साथ लघु अवधि वाली किस्मों का विकास।
  • पूर्व-बाढ़ आहु और बाढ़-पश्चात साली स्थितियों में अधिक उपज देने वाली किस्मों का विकास।
  • निचलीभूमि, अर्ध-गहरे और गहरे जल की स्थितियों के लिए बाढ़ प्रतिरोधी चावल की किस्मों का विकास।
  • उपयुक्त समन्वित कीट और रोग प्रबंधन रणनीतियों का विकास।
  • मध्यवर्ती और अर्ध-गहरी दोनों स्थितियों के लिए उपयुक्त पारंपरिक प्रथाओं के माध्यम से फसल जलमग्नता से बचने के लिए रणनीतियों का विकास।

मुख्य उपलब्धियाँ

  • असम में बोरो और साली के लिए चावल की किस्म ‘चंद्रमा’ विमोचित।
  • असम, बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के लिए तथा सिंचित और वर्षाश्रित निचली पारिस्थितिकी के लिए सुगंधित उच्च उपज देने वाली चावल किस्म सीआर धान 909 का विमोचन।
  • गहरी जल चावल वंशों, बोरो मौसम के लिए प्रजनन सामग्री का विकास।
  • बाढ़ पूर्व आहु फसल के रूप में उपयुक्त चावल किस्म ‘नवीन’ और बाढ़ पश्चात साली फसल के रूप में चावल किस्म ‘अभिषेक’ की पहचान।
  • 830 से अधिक पूर्वी भारतीय चावल जननद्रव्यों का निरंतर रखरखाव।
  • 412 मानव दिवस प्रति हैक्टर की रोजगार सृजन के साथ चावल के बराबर उपज प्रति वर्ष 18.1 टन प्रति हैक्टर का उत्पादन करने वाली एकीकृत चावल-मछली-बागवानी कृषि प्रणाली का विकास।
  • बोरो चावल के लिए बीजों की बुवाई का इष्टतम समय नियत किया गया है।
  • चावल-दाल या चावल-अलसी प्रणाली की तुलना में अधिक शुद्ध आय, उत्पादन क्षमता और लागत: लाभ अनुपात प्रदान करने वाली चावल-सरसों प्रणाली की पहचान।
  • असम और त्रिपुरा के कुछ हिस्सों में चावल के टंग्रो रोग का भौगोलिक वितरण किया गया है। सर्वेक्षण से पता चला कि बोरो और आहु में पत्ता प्रध्वंस/गला प्रध्वंस प्रमुख बीमारी है जबकि जीवाणुज पत्ता अंगमारीबी, आच्छद अंगमारी, आच्छद विगलन और प्रध्वंस मुख्य रूप से साली मौसम के दौरान होते हैं और इसके लिए प्रबंधन प्रथाएं विकसित और अनुशंसित किए गए हैं।
  • फेरोमोन ट्रैप 20/ हेक्टेयर के दर पर उपयोग से डेड हार्ट (3.45%) और व्हाइट इयर हेडर (2.01%) की सबसे कम घटना दर्ज की गई।
  • सितंबर के पहले पखवाड़े में शीत मौसम धान की विलंबित रोपाई से चावल के तना छेदक और पत्ता मोड़क की सबसे ज्यादा घटनाएं दर्ज की गईं।